लेखनी कविता - आह रे,वह अधीर यौवन- जयशंकर प्रसाद

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आह रे,वह अधीर यौवन- जयशंकर प्रसाद आह रे, वह अधीर यौवन !  मत्त-मारुत पर चढ़ उद्भ्रांत ,  बरसने ज्यों मदिरा अश्रांत- सिंधु वेला-सी घन मंडली, अखिल किरणों को ढँककर चली,  भावना ...

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